भीगने का दिल करता रंगों की बरसात में
रंगों की बरसात में भीगने का दिल करता है। फिजाओं में हर तरफ मस्ती छाई है। आखिर होली का त्यौहार है ही ऐसा कि क्या छोटे और क्या बडे - सभी जमकर लुत्फ उठाते हैं। किसी ने स्पाइडरमैन पिचकारी खरीदी है, तो कोई रंग-बिरंगे गुलाल से होली खेलने का मूड बनाए हुए है। किसी के पास मेटल की पिचकारी है, तो कोई कैमरे की शक्ल वाली पिचकारी से रंगों को क्लिक करने की तैयारी में है। किसी को हल्के रंग भाते हैं, तो किसी को गहरे। किसी ने होली में धूम मचाने के लिए अपनी टोली तैयार कर ली है, तो कोई धमाल मचाने की प्लानिंग को फाइनल टच देने में जुटा है।
वैसे, इस बार आप किस तरह होली मनाना चाहेंगे? बस एक दिन बाकी रह गया है और इंतजार की घडी जैसे ही खत्म होगी, फिर तो सभी मस्ती में डूब जाएंगे। लाल, पीले, हरे, गुलाबी - हर तरह के रंगों से सभी जमकर होली खेलेंगे। और हां, जब रंगों से जी भर जाएगा, गुलालों का भी दौर खत्म हो जाएगा, लजीज व्यंजनों के स्वाद को चखते-चखते पेट क्लीन बोल्ड हो जाएगा, तब बारी आएगी इम्प्रेसिव ड्रेस पहनकर दिखाने की। लेकिन एक बात, जो हम सबके लिए जरूरी है, वह यह कि होली में स्वास्थ्य की सुरक्षा में कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए।
दरअसल, प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परंपरा रही है, मगर जैसे-जैसे आधुनिक विकास होते जा रहे हैं, रंगों में तरह-तरह के केमिकल्स मिलाने का प्रचलन बढते जा रहा है। इस मौसम में उपलब्ध फूलों से तैयार किए गए नेचुरल रंग जहां एक ओर त्वचा को ताजगी से भर देते हैं, वहीं दूसरी ओर सिंथेटिक रंगों के उपयोग से शरीर को नुकसान पहुंचता है। इसलिए होली के त्यौहार में इस बात का जरूर खयाल रखें कि कहीं आप जहरीले रंगों का प्रयोग तो नहीं कर रहे हैं, क्योंकि इससे कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। चूंकि इन रंगों में ऑक्सिडाइज्ड मेटल्स व इंडस्ट्रियल डाइज होते हैं, इसलिए ये शरीर के लिए
नुकसानदेह होते हैं।
जहरीले रंगों के उपयोग से डिस्कलरेशन, कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस, एब्रेसन, इरिटेशन, इचिंग व ड्राइनेस जैसी त्वचा की समस्या हो जाती है।
होली खत्म होने के बाद कुछ लोगों को त्वचा में खुजलाहट की शिकायत होती है। दरअसल, घटिया किस्म के रंगों में मौजूद हानिकारक केमिकल्स के चलते ऐसे लोगों की त्वचा में खुजलाहट की शिकायत होने लगती है, जो कि एग्जीमा का रूप भी ले लेता है। चूंकि त्वचा की बाहरी परत को ये रंग आसानी से भेद देते हैं, इसलिए ड्राई स्किन की समस्या भी आम हो जाती है।
रंगों में विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थ, जैसे - ऑक्साइड, मेटल्स, शीशे के कण, अभ्रक के पाउडर और यहां तक कि एनीलिन जैसे तत्व भी मौजूद होते हैं। रंगों में पाए जाने वाले ये जहरीले पदार्थ नाखून, मुंह, आंख व कान के रास्ते शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं। लाल रंगों में मौजूद मरक्युरिक सल्फाइट त्वचा के लिए काफी हानिकारक होता है। जहां तक गुलाल की बात है, तो इसमें दो प्रकार के पदार्थ पाए जाते हैं - एक कलरेंट ,जो कि जहरीला होता है और दूसरा बेस, जिसमें एस्बेटस या सिलिका हो सकता है, जो कि शरीर के लिए नुकसानदायक होते हैं।
अब आपके मन में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि क्या होली बिना रंगों के खेली जाए? ऐसा नहीं है। ये सब बातें आपको सावधान करने के लिए हैं। चूंकि होली के रंगों से आपकी त्वचा रूखी हो जाती है, इसलिए आप कुछ नुसखे आजमा सकते हैं। अपने नाखूनों, तलुवों, कोहनियों और शरीर के उन तमाम हिस्सों पर जहां रंगों के असर होंगे, वैसलीन लगा लेना चाहिए। होली मनाने के बाद रंगों को उतारने में देरी न करें। अपनी त्वचा को फिर से तरोताजा करने के लिए आप सोयाबीन के आटे या बेसन में दूध मिलाकर पेस्ट तैयार करें और त्वचा के ऊपर लगा लें।
त्वचा के अलावा बालों पर भी ध्यान देना जरूरी है, जो कि रंगों के प्रभाव में बिल्कुल ड्राई हो जाते हैं। ध्यान रखें कि बहुत देर तक बालों में रंग व गुलाल लगा हुआ न छोडें। इसके अलावा, खास ध्यान रखें कि आंखों के अंदर रंग या गुलाल प्रवेश न कर सके।
हैप्पी होली! (JAGRAN)
रंगों की बरसात में भीगने का दिल करता है। फिजाओं में हर तरफ मस्ती छाई है। आखिर होली का त्यौहार है ही ऐसा कि क्या छोटे और क्या बडे - सभी जमकर लुत्फ उठाते हैं। किसी ने स्पाइडरमैन पिचकारी खरीदी है, तो कोई रंग-बिरंगे गुलाल से होली खेलने का मूड बनाए हुए है। किसी के पास मेटल की पिचकारी है, तो कोई कैमरे की शक्ल वाली पिचकारी से रंगों को क्लिक करने की तैयारी में है। किसी को हल्के रंग भाते हैं, तो किसी को गहरे। किसी ने होली में धूम मचाने के लिए अपनी टोली तैयार कर ली है, तो कोई धमाल मचाने की प्लानिंग को फाइनल टच देने में जुटा है।
वैसे, इस बार आप किस तरह होली मनाना चाहेंगे? बस एक दिन बाकी रह गया है और इंतजार की घडी जैसे ही खत्म होगी, फिर तो सभी मस्ती में डूब जाएंगे। लाल, पीले, हरे, गुलाबी - हर तरह के रंगों से सभी जमकर होली खेलेंगे। और हां, जब रंगों से जी भर जाएगा, गुलालों का भी दौर खत्म हो जाएगा, लजीज व्यंजनों के स्वाद को चखते-चखते पेट क्लीन बोल्ड हो जाएगा, तब बारी आएगी इम्प्रेसिव ड्रेस पहनकर दिखाने की। लेकिन एक बात, जो हम सबके लिए जरूरी है, वह यह कि होली में स्वास्थ्य की सुरक्षा में कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए।
दरअसल, प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परंपरा रही है, मगर जैसे-जैसे आधुनिक विकास होते जा रहे हैं, रंगों में तरह-तरह के केमिकल्स मिलाने का प्रचलन बढते जा रहा है। इस मौसम में उपलब्ध फूलों से तैयार किए गए नेचुरल रंग जहां एक ओर त्वचा को ताजगी से भर देते हैं, वहीं दूसरी ओर सिंथेटिक रंगों के उपयोग से शरीर को नुकसान पहुंचता है। इसलिए होली के त्यौहार में इस बात का जरूर खयाल रखें कि कहीं आप जहरीले रंगों का प्रयोग तो नहीं कर रहे हैं, क्योंकि इससे कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। चूंकि इन रंगों में ऑक्सिडाइज्ड मेटल्स व इंडस्ट्रियल डाइज होते हैं, इसलिए ये शरीर के लिए
नुकसानदेह होते हैं।
जहरीले रंगों के उपयोग से डिस्कलरेशन, कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस, एब्रेसन, इरिटेशन, इचिंग व ड्राइनेस जैसी त्वचा की समस्या हो जाती है।
होली खत्म होने के बाद कुछ लोगों को त्वचा में खुजलाहट की शिकायत होती है। दरअसल, घटिया किस्म के रंगों में मौजूद हानिकारक केमिकल्स के चलते ऐसे लोगों की त्वचा में खुजलाहट की शिकायत होने लगती है, जो कि एग्जीमा का रूप भी ले लेता है। चूंकि त्वचा की बाहरी परत को ये रंग आसानी से भेद देते हैं, इसलिए ड्राई स्किन की समस्या भी आम हो जाती है।
रंगों में विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थ, जैसे - ऑक्साइड, मेटल्स, शीशे के कण, अभ्रक के पाउडर और यहां तक कि एनीलिन जैसे तत्व भी मौजूद होते हैं। रंगों में पाए जाने वाले ये जहरीले पदार्थ नाखून, मुंह, आंख व कान के रास्ते शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं। लाल रंगों में मौजूद मरक्युरिक सल्फाइट त्वचा के लिए काफी हानिकारक होता है। जहां तक गुलाल की बात है, तो इसमें दो प्रकार के पदार्थ पाए जाते हैं - एक कलरेंट ,जो कि जहरीला होता है और दूसरा बेस, जिसमें एस्बेटस या सिलिका हो सकता है, जो कि शरीर के लिए नुकसानदायक होते हैं।
अब आपके मन में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि क्या होली बिना रंगों के खेली जाए? ऐसा नहीं है। ये सब बातें आपको सावधान करने के लिए हैं। चूंकि होली के रंगों से आपकी त्वचा रूखी हो जाती है, इसलिए आप कुछ नुसखे आजमा सकते हैं। अपने नाखूनों, तलुवों, कोहनियों और शरीर के उन तमाम हिस्सों पर जहां रंगों के असर होंगे, वैसलीन लगा लेना चाहिए। होली मनाने के बाद रंगों को उतारने में देरी न करें। अपनी त्वचा को फिर से तरोताजा करने के लिए आप सोयाबीन के आटे या बेसन में दूध मिलाकर पेस्ट तैयार करें और त्वचा के ऊपर लगा लें।
त्वचा के अलावा बालों पर भी ध्यान देना जरूरी है, जो कि रंगों के प्रभाव में बिल्कुल ड्राई हो जाते हैं। ध्यान रखें कि बहुत देर तक बालों में रंग व गुलाल लगा हुआ न छोडें। इसके अलावा, खास ध्यान रखें कि आंखों के अंदर रंग या गुलाल प्रवेश न कर सके।
हैप्पी होली! (JAGRAN)

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